June 26th, 2014
चाँदनी में नहा रहा है नीम
मन ही मन मुस्कुरा रहा है नीम
ख़ुशबुओं को पवन-झकोरों से
और नज़दीक ला रहा है नीम
चुप है धरती, ख़मोश अम्बर है
सबको लोरी सुना रहा है नीम
दाद देती हैं टहनियाँ झुककर
फिर ग़ज़ल गुनगुना रहा है नीम
इस झुलसती हुई दुपहरी में
याद आँगन का आ रहा है नीम
ऐसी क़द्रें कि जिनसे हम, हम थे
याद फिर से दिला रहा है नीम