June 26th, 2014
ज़िन्दगी है जागती आँखों के सपनों का सफ़र
झील में ज्यों झिलमिलाते चाँद-तारों का सफ़र
उम्र भर रौशन किए अश्क़ों से लफ्ज़ों के चिराग़
इस तरह से तय किया है हमने गीतों का सफ़र
शहर से जब भी हम अपने गाँव लौटे यूँ लगा
करके तय आए हों घर जैसे कि सदियों का सफ़र
शाख़ से टूटे तो आँधी साथ अपने ले उड़ी
ख़त्म हो जाने कहाँ इन ज़र्द पत्तों का सफ़र
एक पल नज़रें उठीं, आँखें मिलीं, फिर झुक गईं
लौट आए कर के हम जैसे कि जन्मों का सफ़र