हमसे करते रहे दिल्लगी रात भर

June 26th, 2014

हमसे करते रहे दिल्लगी रात भर
नींद भी, ख़्वाब भी, आप भी रात भर

 

रात भर बादलों ने उड़ाई हँसी
छटपटाती रही इक नदी रात भर

 

ऐसा लगता है मौसम का रुख़ देखकर
बर्फ़ शायद कहीं पर गिरी रात भर

 

फूल बनते ही कल जो बिखर जाएगी
याद आती रही वो कली रात भर

 

चांदनी पर ही सबने कहे शे’र क्यों
सोचती ही रही तीरगी रात भर

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