June 26th, 2014
कब का भूला पल आँखों में उभरा है
यादों का बादल आँखों में उभरा है
पाँव पसारे हैं जब भी सन्नाटे ने
भारी कोलाहल आँखों में उभरा है
पत्थर ही पत्थर पलकों से टकराए
जब-जब शीशमहल आँखों में उभरा है
जब भी सूरज ने आँखें दिखलाई हैं
आँगन का पीपल आँखों में उभरा है
फिर मुमताज़ मेरे गीतों की दफ़्न हुई
फिर इक ताजमहल आँखों में उभरा है
जिसने आँसू पोंछे मेरा मुख चूमा
वो मैला आँचल आँखों में उभरा है