June 26th, 2014
चन्द सुधियों की सूखी हुई पत्तियाँ
रोज़ आँगन से चुनती रहीं आँधियाँ
अपनी धुन में नदी गुनगुनाती रही
छटपटाती रहीं रेत पर मछलियाँ
मेरे आँगन में ख़ुशियाँ पलीं इस तरह
निर्धनों के यहाँ जिस तरह बेटियाँ
जिस तरफ़ मोड़ देंगे ये मुड़ जाएँगीं
बेटियाँ वृक्ष की हैं हरी डालियाँ
गिर के आकाश से नट तड़पता रहा
सब बजाते रहे जोश में तालियाँ
सब के आँगन में बरसात होती रही
मेरे सिर पर गरजती रहीं बिजलियाँ
मैं हूँ सूरज, मेरी शायरी धूप है
धूप रोकेंगी क्या काँच की खिड़कियाँ