June 26th, 2014
ये काम है तो बहुत ही कठिन मगर ढूँढें
नदी के तट पे गिरे रेत के वो घर ढूँढें
महक उठे हैं ये काँटे गुलाब की मानिन्द
चलो कि बाग़ में अब तितलियों के पर ढूँढें
ये कह रही है मुसाफ़िर से रास्ते की थकन
मैं साथ हूँ तो तेरे, चल नया सफ़र ढूँढें
सभी हैं पीर, पयम्बर कि सन्त और पण्डे
कोई बताये यहाँ आदमी किधर ढूँढें
उसे तो मरना था, वो मर गई, चलो आओ
जो उसके जिस्म में चटके थे वो शरर ढूँढें
उगे सहन में मेरे और छाँव दे तुझको
वफ़ा की गलियों में हम ऐसा इक शजर ढूँढें
यही तक़ाज़ा है महकी हुई हवाओं का
चलो दरख़्तों के दामन में कुछ समर ढूँढें