गोपाल-सा मन लिए राजगोपाल जी….–डॉ. विष्णु सक्सेना

June 25th, 2014

बात उन दिनों की है जब मंच पर हास्य कविता की बादशाहत मज़बूत होती जा रही थी और गीत-ग़ज़ल मायूस होकर अपने को कमज़ोर प्रदर्शित करने पर उतारू थी। फर्रुख़ाबादा के एक आयोजन में पहली बार मुलाक़ात हुई भाईसाहब से। शिवओम अम्बर जी ने मेरा परिचय कराया। मैं उस वक्त संघर्षशील कवि था और भाईसाहब स्थापित। लेकिन हास्य के प्रादुर्भाव के कारण वो भी संघर्षशील से नज़र आ रहे थे। ख़ुशक़िस्मती से होटल में हम दोनों का कमरा भी एक था। मैंने कमरे में घुसने से पहले उनसे पूछा- ”भाईसाहब! आपको मेरे साथ रुकने में कोई परेशानी तो नहीं?” उन्होंने बड़ी सहजता से उठकर मुझे गले लगाया और मुझे रूम शेयर करने की इज़ाज़त दे दी। मेरे लिये चाय मंगाई और फिर मेरे इतिहास के बारे में जानकर ख़ामोश हो गए।

 

ध्यान रहे, ये मेरी पहली मुलाक़ात थी। रात तक उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की। जब मंच पर पहुँचे तो मैं सहमा हुआ था क्योंकि मंच पर एक से बढ़कर एक कवि मौज़ूद थे। मेरी मानसिक स्थिति देखकर उन्होंने मुझे हिम्मत दी। मैं छोटा था इसलिए मेरा क्रम भी जल्दी आना था। जैसे ही अम्बर जी ने मेरा नाम पुकारा मेरी धड़कन बढ़ गई। उस वक्त आत्मविश्वास की बहुत कमी थी। बड़ी हिम्मत से माइक पर गया। कविता पढ़ी। उस दिन मुझे राजगोपाल जी के अलावा हास्य कवियों ने भी बहुत दाद दी। उस दिन पहली बार उन्होंने मुझे सुना। मेरी कविता और प्रस्तुति देखकर उनकी कोरें गीली हो गईं थीं। मुझे अपने पास बैठा कर बहुत प्यार दिया। कवि-सम्मेलन ख़त्म हुआ तो हम लौटकर होटल में आए तो उन्होंने भावुक होकर कहा कि बेटे तुमको आज सुनकर ये आश्वस्ति तो हो गई कि गीत विधा मंच पर अभी बहुत दिनों तक ज़िन्दा रहेगी। चाहे लोग ग़ज़ल को सुनें या न सुनें।

 

मैंने आप पहली बार देखा कि तुम्हारे गीत को हास्य के बड़े और दिग्गज कवियों ने भी सराहा। अपनी प्रशंसा सुनकर मेरे मन में लड्डू से फूटने लगे। भाईसाहब के प्रति मेरे मन में अगाध श्रध्दा पैदा हो गई। फिर तो बहुत मुलाक़ातें हुईं लेकिन मन में दोनों के भाव और मज़बूत होते गए। एक बार उन्होंने गुड़गाँव के कवि-सम्मेलन में भी मुझे बुलाया था। तब उनके घर जाने का भी सौभाग्य मिला। सबसे छोटे भाई की तरह परिचय कराया करते थे।

 

जब उनके दिवंगत होने का समाचार मिला तो मन बहुत व्यथित हुआ। उन्हें प्रभु ने बहुत जल्दी अपने पास बुला लिया। अभी कुछ दिन और हमारे बीच रहते तो उनसे बहुत सारा प्यार और बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता। वे बड़े ग़ज़लकार और दोहाकार तो थे ही, लेकिन उनकी सहजता और सरलता ने उन्हें बहुत बड़ा बना दिया था। उन्हें मेरी विनम्र श्रध्दांजलि…..

 

– डॉ. विष्णु सक्सेना
ग़ाज़ियाबाद, उ.प्र.
9412277268

This entry was posted on Wednesday, June 25th, 2014 at 6:17 pm and is filed under अपनों की नज़र में. You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

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