June 26th, 2014
खोजना है खोजिए, मिल जाएगा मेरा पता
बूढ़े पेड़ों के तनों पर अब भी है लिक्खा हुआ
ख़ुदग़रज़ दुनिया से मैंने आज तक चाहा भी क्या
कोई स्वर, कोई ग़ज़ल या कोई मुखड़ा गीत का
रूह में ताज़ा है जिसकी सौंधी ख़ुश्बू आज भी
उस शहर में अब मुझे कोई नहीं पहचानता
मेरे बचपन से मुझे इक बार जो मिलवा सके
ढूँढता फिरता हूँ मैं जादू का ऐसा आइना
हमने दीवारें गिराई थीं कि हम होंगे क़रीब
और बढ़ता ही गया लेकिन दिलों का फ़ासला
ढेर सारे अप्रतीक्षित पत्र मिलते हैं मुझे
मुझको है जिसकी तलब, लाता नहीं वो डाकिया