रात भर रोई है, तड़पी है नदी

June 26th, 2014

रात भर रोई है, तड़पी है नदी
याद सागर की उसे आती रही

 

दर्द से हम हैं, कि हमसे दर्द है
यह पहेली है अभी उलझी हुई

 

जब भी देखा, अजनबी ख़ुद को लगा
आइने में है या मुझमें है कमी

 

चांदनी है क्या ये उनसे पूछिए
जिनकी आँखों में नहीं है रोशनी

 

स्वप्न हो जैसे दुशासन, आँख में
नींद, ज्यों इनमें घिरी हो द्रौपदी

 

इस हथेली पर लिखो अब गीत तुम
मेट दी है हमने रेखा भाग्य की

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