June 26th, 2014
नियम सब टूट जाते हैं, चलन की सुध नहीं रहती
कि जब मन, मन से मिलता है तो तन की सुध नहीं रहती
हृदय के देवता जब भी कभी साकार होते हैं
भजन की सुध नहीं रहती, नमन की सुध नहीं रहती
सफ़र मुश्क़िल सही लेकिन, न मुड़कर देखना हरगिज़
नज़र आ जाए मंज़िल तो थकन की सुध नहीं रहती
मदिर मधुकर में जब मकरंद की तृष्णा उमड़ती है
हज़ारों शूल चुभते हैं चुभन की सुध नहीं रहती
मुझे उपहार जो देने हैं तुमने जीते-जी दे दो
मरण के बाद तो अपने क़फ़न की सुध नहीं रहती
परिन्दा पंख पाकर जब भी पहली बार उड़ता है
धरा को भूल जाता है गगन की सुध नहीं रहती