June 26th, 2014
भोर के कुछ उजले-उजले गीत जो शब भर लिखे
घुप सियह रातों में मैंने जागकर अक्सर लिखे
ज़िन्दगी तुझको जिया, तुझको लिखा कुछ इस तरह
जिस तरह कोई किसी का नाम पानी पर लिखे
पत्थरों की ज़द में हैं जब तक कि ये आज़र सभी
किसकी जुर्अत है जो पत्थर को यहाँ पत्थर लिखे
मेरी फ़ितरत बहते रहना थी, बहा मैं उम्र भर
उसकी मर्ज़ी वो मुझे दरिया लिखे, सागर लिखे
कशमकश में मुब्तिला है सत्य का वो पक्षधर
होश को खोकर लिखे, या होश में आकर लिखे