June 26th, 2014
जब ख़ुद को तनहा पाएँगे, याद तुम्हारी आएगी
सुधियों की साँकल खोलेंगे, याद तुम्हारी आएगी
मन के आंगन से पुरवा के मादक झोंके चुपके से
आँख बचाकर जब गुज़रेंगे, याद तुम्हारी आएगी
हर सावन में नैन हमारे टूट-टूटकर बरसेंगे
घर-पर्वत जंगल डूबेंगे, याद तुम्हारी आएगी
दिन-भर हम मशगूल रहेंगे दुनियादारी में लेकिन
सांझ ढले जब घर लौटेंगे, याद तुम्हारी आएगी
जितने दिन लेकर आए हैं, उतने दिन तो जीना है
किन्तु कलेण्डर जब बदलेंगे, याद तुम्हारी आएगी