अपनी बूढ़ी आँखों से कल, बरगद ने सब देखा है

June 26th, 2014

अपनी बूढ़ी आँखों से कल, बरगद ने सब देखा है
कहाँ गिरा लाजो का आँचल, बरगद ने सब देखा है

 

तानों से तँग आकर आख़िर गाँव की मीठी पोखर ने
धीरे-धीरे ओढ़ी दलदल, बरगद ने सब देखा है

 

मौसम जिन खेतों में आकर डेरा डाला करते थे
खेत बने वो कैसे जंगल, बरगद ने सब देखा है

 

कल तक सारे मज़हब जिसको अदब से शीश नवाते थे
किसने काटा है वो पीपल, बरगद ने सब देखा है

 

मुन्सिफ़ बने हुए हैं कव्वे, गिध्दों की पंचायत में
अपराधिन-सी खड़ी है कोयल बरगद ने सब देखा है

 

गेहूँ बोये किन्तु खेत में फ़स्ल उगी बन्दूकों की
गाँव हो गये कैसे चम्बल, बरगद ने सब देखा है

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