अब नहीं है पहले जैसी बात उसकी चाल में

June 26th, 2014

अब नहीं है पहले जैसी बात उसकी चाल में
फिर से उलझी है नदी जलकुंभियों के जाल में

जाग कर धागों से कोई काढ़ता है अब कहाँ
प्यार के रंगीन अक्षर मखमली रूमाल में

अपने बूढ़े बाप का दुख जानती हैं बेटियाँ
इसलिये मर कर भी जी लेती हैं वो ससुराल में

बीज, मिट्टी, खाद की चिन्ता बिना हम चाहते
पेड़ से फल प्राप्त हो जाएँ हमें हर हाल में

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