छाँव देते हैं जो उनको न जलाओ लोगो

June 26th, 2014

छाँव देते हैं जो उनको न जलाओ लोगो
इसमें भी जान है, आरी न चलाओ लोगो

 

इन हरे पेड़ों को ऐसे न जलाओ लोगो
छाँव ही देंगे तुम्हें पास तो आओ लोगो

 

काटना तो बहुत आसान है इनको लेकिन
सूखी शाख़ों को हरा कर के दिखाओ लोगो

 

चंद चीज़ें ज़रूरतों की, दरो-दरवाज़े
कट गये, फिर भी कहेंगे कि बनाओ लोगो

 

इन दरख़्तों की ही फुनगी पे चांद उगता है
चांदनी रात को मरने से बचाओ लोगो

 

हम तो सह लेंगे जो गुज़रेगी हमारे ऊपर
पर परिन्दों के घरों को न गिराओ लोगो

 

बेज़ुबानों की भी आहों में असर होता है
सोच लो, सोच के फिर हमको मिटाओ लोगो

 

धूप सुस्तायेगी फिर किसके भला काँधों पर
गुनगुनायेगी पवन किससे बताओ लोगो

 

दूर तक बालू-ही-बालू के गलीचे होंगे
पाँव जल जायेंगे कुछ होश में आओ लोगो

This entry was posted on Thursday, June 26th, 2014 at 9:24 pm and is filed under ग़ज़ल, ज़र्द पत्तों का सफ़र. You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

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