गुरु का दर्जा

June 26th, 2014

गुरु का दर्जा सबसे ऊँचा सारे हिन्दुस्तान में
दसों दिशाएँ बाँच रही हैं, मंत्र ये सबके कान में

 

गुरु ही हैं जो सदा उबारे, पग-पग अंधकार के भय से
बिन शिक्षा के हम हैं ऐसे, बिना सुगंध सुमन हों जैसे
यही सार उद्घोषित होता, सब धर्मों के ज्ञान में

 

कितना भी हो कठिन लक्ष्य, आसान बनाते गुरुवर
सबकी राहों में आशा के, दीप जलाते गुरुवर
गुरु चाहें तो प्राण फूँक दें, पल भर में पाषाण में

 

आशंका, भय, कठिनाई से जब भी हम डरते हैं
तब गुरु ही अंधियारे पथ पर, उजियारा करते हैं
गुरु परिवर्तन कर सकते हैं, विधि के लिखे विधान में

 

क ख ग घ, ए बी सी डी, रटने को देते हैं
और फिर जीवन के दर्शन का पाठ पढ़ा देते हैं
शिक्षक ही अवलंबन बनते, बालक के उत्थान में

 

निस्पृहता और निश्छलता ही, गुरुता की थाती है
गुरु के मन में स्वार्थ भावना, पनप कहाँ पाती है
गुरु कुछ भेद नहीं करते हैं, शिष्य और संतान में

This entry was posted on Thursday, June 26th, 2014 at 9:27 pm and is filed under अन्य, गीत. You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

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