लम्हें यादों के चिराग़ों की तरह होते हैं

June 30th, 2014

बन्द पलकों में उजालों की तरह होते हैं
लम्हें यादों के चिराग़ों की तरह होते हैं

 

ये चटखते हैं तो मन ख़ुश्बुओं सा होता है
अधखिले ज़ख़्म ग़ुलाबों की तरह होते हैं

 

धूप सह कर जो ज़माने को देते हैं छाँव
मन्दिरों और शिवालों की तरह होते हैं

 

ज़िन्दगी क्या है बस इक रँग-बिरँगी चादर
रिश्ते नाते सभी धागों की तरह होते हैं

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