June 30th, 2014
चंद्रिका की दूधिया चादर में सिमटे हैं दरख्त
साधना में लीन ऋषियों जैसे लगते हैं दरख्त
साये में इनके युगल दुख-दर्द अपना बाँचते
प्रेमियों के मन की पीड़ा को समझते हैं दरख्त
काटते हैं, चीरते हैं, मनुज इनको फिर भी ये
काम आते हैं उन्हीं के, सीधे-सादे हैं दरख्त
प्राय: हम सम्पन्न हो कर त्याग देते हैं विनय
किन्तु ज्यों-ज्यों फलते हैं, त्यों-त्यों ही झुकते हैं दरख्त
इनके ही कारण है इनमें वेग, बल, संचेतना
ऑंधियों की ऑंख में फिर भी खटकते हैं दरख्त