June 30th, 2014
नाज़-नख़रों में पली रूपकँवर
हो गई जलकर सती रूपकँवर
प्रश्न हमसे पूछती है लाखों
राख की ढेरी बनी रूपकँवर
अंधविश्वासों के गाँव में सदा
इक न इक जलती रही रूपकँवर
हम भी हत्यारों में शामिल हैं कहीं
कुछ हमारी भी तो थी रूपकँवर
आप जागेंगे कि जब जल मरेगी
आपकी अपनी लली रूपकँवर
Tags: Poetry
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on Monday, June 30th, 2014 at 5:21 pm and is filed under ख़ुशबुओं की यात्रा, ग़ज़ल.
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