June 30th, 2014
जब कभी अर्जुन से कोई बाण सधवाया गया
काठ का कहकर किसी पंछी को मरवाया गया
आप क्या जानें कि कितने कुशल कर काटे गए
जब किसी की याद में इक ताज बनवाया गया
जो भी चहका, पहले उसकी काट ली है जीभ फिर
न्याय करने के लिए आयोग बिठलाया गया
अपनी इच्छा से जली है कब कोई रूपकँवर
धर्म की मदिरा पिला हर बार जलवाया गया
कौन चाहेगा भला पीना गरल, सोचो ज़रा
जो भी हत्थे चढ़ गया सुकरात कहलाया गया