June 30th, 2014
अब नहीं है पहले जैसी बात उसकी चाल में
फिर से उलझी है नदी जलखुम्भियों के जाल में
जाग कर धागों से कोई काटता है अब कहाँ
प्यार के रंगीन अक्षर मखमली रूमाल में
अपने बूढ़े बाप का दुख जानती हैं बेटियाँ
इसलिए मर कर भी जी लेती हैं वो ससुराल में
बीज-मिट्टी-खाद की चिन्ता बिना हम चाहते
पेड़ से फल प्राप्त हो जाएँ हमें तत्काल में