June 30th, 2014
मेरी ग़ज़लें फूल या बुलबुल नहीं हैं
इसलिए ये आपके काबिल नहीं हैं
इनमें भी संगीत है, पर है अलग सा
ये किसी के पाँव की पायल नहीं हैं
देखती हैं, सोचती हैं, ये भी लेकिन
फ़र्क़ है ये भीड़ में शामिल नहीं हैं
धार है, इक आग है इन सबके भीतर
ये खिलौनों की तरह बिल्कुल नहीं हैं
इनमें हिम्मत है ये तम को चीरती हैं
तोड़ती हैं मौन ये निर्बल नहीं हैं