June 30th, 2014
अँधेरा है पर अच्छा लग रहा है
तेरी यादों का सूरज उग रहा है
तुम्हारे साथ थे सतयुग के सपने
तुम्हारे बिन सदा कलयुग रहा है
चिराग़ों की बुझी पलकों में झाँको
उजाला अब भी शायद जग रहा है
इन ऑंखों की चमकती सीपियों में
तुम्हारे नाम का ही नग रहा है
ये मन हर बार नदिया के किनारे
पहुँचकर बिंधने वाला मृग रहा है