June 30th, 2014
सांझ गहराते ही जल जाते हैं सारे बल्ब ये
रात की कजरारी ऑंखों के हैं तारे बल्ब ये
रौशनी की इक नदी सी फूटती दीखी हमें
दूर से हमने कभी भी जब निहारे बल्ब ये
इनकी फ़ितरत है कि देते हैं सभी को रौशनी
मज़हबों और जातियों को बिन विचारे बल्ब ये
घर की दीवारें सजाने के भी काम आ जाएंगे
टूटे-फूटे, फ्यूज़ और क़िस्मत के हारे बल्ब ये