जम गया सो बर्फ़ होगा, बह गया जो होगा पानी
June 30th, 2014
जम गया सो बर्फ़ होगा, बह गया जो होगा पानी
ख़ून की अपनी ज़ुबां है, ख़ून की अपनी रवानी
ख़ून है जब तक रग़ों में, ख़ूब निखरे है जवानी
जब बुढ़ापा आये है तो ख़ून बन जाता है पानी
हर कली की आँख नम है, पत्ता-पत्ता काँपता है
आँकड़े सब तोड़ शायद रात भर बरसा है पानी
पर्वतों से पत्थरों को धार में लुढ़काने वाली
बह न निकले साहिलों को तोड़कर दरिया का पानी