June 26th, 2014
विदेश जाने का मन है मगर ये सोचूँ हूँ
कि हो न जाऊँ कहीं दर-ब-दर ये सोचूँ हूँ
चला तो जाऊँ मगर कैसे भूल पाऊँगा
चहकते दोस्त, महकती डगर ये सोचूँ हूँ
यहाँ की चाँदनी, ठण्डी हवा, महकती फ़िज़ा
मिलेंगे ऐसे ही मौसम उधर? ये सोचूँ हूँ
यहाँ तो ममता के आँचल की छत्रछाया है
कटेगी कैसे वहाँ दोपहर ये सोचूँ हूँ
वहाँ के लोग तो बारूद की दुकानें हैं
झुलस न जाएँ कहीं मेरे पर ये सोचूँ हूँ