कुछ अनोखा है आजकल मुझमें

June 26th, 2014

कुछ अनोखा है आजकल मुझमें
मैं ग़ज़ल में हूँ और ग़ज़ल मुझमें

 

डूबकर देख एक पल मुझमें
ढूँढ ले मुश्क़िलों के हल मुझमें

 

तू नुमाइश से मत रिझा मुझको
है अभी शेष आत्मबल मुझमें

 

काट मत धूप की शिक़ायत पर
कल को लगने हैं मीठे फल मुझमें

 

तू समन्दर है फिर भी खारा है
मैं हूँ नदिया, है मीठा जल मुझमें

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