दरिया का था या फिर ये क़रिश्मा ख़ुदा का था

June 26th, 2014

दरिया का था या फिर ये क़रिश्मा ख़ुदा का था
पर्वत भी बह गये वो बहाव बला का था

 

तलवों में किरचें चुभती रहीं जिसकी बार-बार
टूटा हुआ वो आईना मेरी अना का था

 

कुछ बुझ गये हवाओं से डूबे भँवर में कुछ
जलता रहा दीया जो मेरी आस्था का था

 

आँगन में आज तक मेरे ख़ुश्बू उसी की है
एहसास के चमन में वो झोंका हवा का था

 

जब तक थी मन में जलवाफ़िगन दर्द की किरण
मन्दिर वो एक जैसे किसी देवता का था

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