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हो गए यतीम

June 26th, 2014

ना आंगन में किसी के तुलसी, ना पिछवाड़े नीम
सूख गए सब ताल-तलैया, हम हो गए यतीम
रे भैया हम हो गए यतीम

 

नए-नए नित रोग पनपते, नए-नए उपचार
नए चिकित्सक, नई चिकिस्ता, दोनों ही लाचार
धनवंतरि को आँख दिखाते हैं ये नीम-हक़ीम
रे भैया हम हो गए यतीम

 

क्रेडिट कार्ड्स हैं अब जेबों में, बाजू में बालाएँ
गुज़रे कल की बात हुई हैं, सच्ची प्रेम-कथाएँ
स्वयं आनारकली को चिनवाते हैं आज सलीम
रे भैया हम हो गए यतीम

 

गंगा को तज पूजन लागे दूषित पोखर-नाले
बोए बबूल, काट लिए हैं पेड़ सभी फल वाले
बौने क़द वाले भी अब तो लगने लगे लहीम
रे भैया हम हो गए यतीम

 

ललुआ जब से शहर में जाकर सीखा ए बी सी डी
गिटपिट-गिटपिट करता फिरता, सुनता नहीं किसी की
ना काहू से राम-राम ना काहू से रहीम
रे भैया हम हो गए यतीम

 

लक्ष्मण रेखाएँ नातों की अब न किसी को भातीं
चुभने लगा सिंदूर मांग में, चूड़ियाँ गड़-गड़ जातीं
धर्म-कर्म की सीख हुई है बूढ़ों की तालीम
रे भैया हम हो गए यतीम