शक़्ल से बिल्कुल हमारी ही तरह दिखता था वो
June 26th, 2014
शक़्ल से बिल्कुल हमारी ही तरह दिखता था वो
पर बला की आग सीने में लिये फिरता था वो
दिन की अंधी गहमागहमी से मिला करता था जो
रात के उजले पहर में बैठ कर लिखता था वो
आँसुओं से थी लबालब ज़िंदगी उसकी मगर
जब भी हँसता था, ठहाके मार कर हँसता था वो
गीत-सी फ़ितरत थी उसकी, थी ग़ज़ल जैसी अदा
गीत और ग़ज़लों के शायद बीच का रिश्ता था वो
(महाप्राण निराला की स्मृति में)