June 26th, 2014
वो रोज़-रोज़ मेरा इम्तिहान लेता है
कभी ज़मीन, कभी आसमान लेता है
ख़ुदा के बाद मुझे बस तू ही डराता है
तू सर झुका के मेरी बात मान लेता है
कहानी अपनी सुनाना मैं चाहता हूँ उसे
शह्र में आके कोई जब मकान लेता है
मैं जानता हूँ कि मुंसिफ़ का फ़ैसला क्या है
कहानी कुछ है मगर कुछ बयान लेता है
मैं धूप चाहूँ तो बादल बिखेर देगा वो
मैं छाँव मांगूँ मेरा सायबान लेता है