नभ में जब बादल छितराये
June 26th, 2014
नभ में जब बादल छितराये
झील में नीलकमल मुस्काये
सागर तो पी लूंगा मैं भी
कोई मुझ में प्यास जगाये
आलिंगन में नशा है जैसे
मौसम से मौसम टकराये
मन की बात न मन से पूछो
दीपक से दीपक जल जाये
बिष-दंशी चंदन ही जग को
अपनी ख़ुश्बू से महकाये