इसलिए तनहा खड़ा है
June 30th, 2014
इसलिए तनहा खड़ा है
है अभी उसमें अना है
बिन बिके जो लिख रहा है
हममें वो सबसे बड़ा है
भीड़ से बिल्कुल अलग है
आज भी वो सोचता है
ख़ून दौड़े है रग़ों में
जब कभी वो बोलता है
कल उसी पर शोध होंगे
आज जो अज्ञात-सा है
June 30th, 2014
इसलिए तनहा खड़ा है
है अभी उसमें अना है
बिन बिके जो लिख रहा है
हममें वो सबसे बड़ा है
भीड़ से बिल्कुल अलग है
आज भी वो सोचता है
ख़ून दौड़े है रग़ों में
जब कभी वो बोलता है
कल उसी पर शोध होंगे
आज जो अज्ञात-सा है
June 30th, 2014
रात दिन जो भोगते हैं
हम वही तो लिख रहे हैं
नाम पर उपलब्धियों के
ऑंकड़े ही ऑंकड़े हैं
इक अदद कुर्सी की ख़ातिर
घर, शहर, दफ्तर जले हैं
ये भी बच्चे हैं मगर ये
क्यों खिलौने बेचते हैं