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रात दिन जो भोगते हैं

June 30th, 2014

रात दिन जो भोगते हैं
हम वही तो लिख रहे हैं

 

नाम पर उपलब्धियों के
ऑंकड़े ही ऑंकड़े हैं

 

इक अदद कुर्सी की ख़ातिर
घर, शहर, दफ्तर जले हैं

 

ये भी बच्चे हैं मगर ये
क्यों खिलौने बेचते हैं

कब निकला, कब डूबा चाँद

June 26th, 2014

कब निकला, कब डूबा चाँद
शहर में किसने देखा चाँद

 

जाने किस ग़म में तिल-तिल
रोज़ पिघलता रहता चाँद

 

सोच रहा हर इक मुफ़लिस
काश रुपैया होता चाँद

 

करवा-चौथ को होता है
सबका अपना-अपना चाँद

 

नभ-सरिता में तैर रहा
कश्ती बनकर आधा चाँद