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कुछ तो अपने और मेरे दरमियाँ रहने भी दे

June 26th, 2014

कुछ तो अपने और मेरे दरमियाँ रहने भी दे
दूरियाँ चुभती हैं फिर भी दूरियाँ रहने भी दे

 

ख़्वाब है तो टूट भी जाएगा थोड़ी देर में
तू मेरी पलकों पे अपनी उँगलियाँ रहने भी दे

 

मैं मुक़म्मल हो गया तो देवता बन जाऊँगा
मुझमें हैं जो ख़मियाँ वो ख़मियाँ रहने भी दे

 

इनसे मत उम्मीद रख ये रोशनी देंगे तुझे
झील में तारों की हैं परछाइयाँ रहने भी दे

 

फेंक मत इनको कि जब अपनों से मन भर जाएगा
हौसला देंगी तुझे ये चिट्ठियाँ रहने भी दे