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ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ है निगाहों में

June 26th, 2014

ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ है निगाहों में
घुल रहा है ज़हर हवाओं में

 

घर जिन्हें बाँध कर न रख पाया
क्या मिलेगा उन्हें गुफ़ाओं में

 

हर लहर से ये दीप जूझेंगे
नेह जब तक है वर्तिकाओं में

 

हर क़दम देख-भाल कर चलना
राहज़न भी हैं रहनुमाओं में

 

धर्म के नाम पर भी अब तो यहाँ
लोग जुड़ते नहीं सभाओं में