न्यायाधीशों की हक़ीक़त क्या सुनाएँ
June 26th, 2014
न्यायाधीशों की हक़ीक़त क्या सुनाएँ
तय हैं जब पहले से ही सारी सज़ाएँ
काँच के इस शहर में सब कुछ हरा है
हैं अगर सूखी तो बस संवेदनाएँ
फूल, ख़ुश्बू, ओस की बूँदें सभी कुछ
सोखती फिरती हैं अब ज़ालिम हवाएँ
जिनके तलुओं से लहू टपका, उन्हीं से
मंज़िलों को भी हैं कुछ संभावनाएँ
है पराजित सूर्य यदि अँधियार से तो
जुगनुओं से ही कहो वे टिमटिमाएँ