आजकल हम लोग बच्चों की तरह लड़ने लगे
June 26th, 2014
आजकल हम लोग बच्चों की तरह लड़ने लगे
चाबियों वाले खिलौनों की तरह लड़ने लगे
ठूँठ की तरह अकारण ज़िंदगी जीते रहे
जब चली आँधी तो पत्तों की तरह लड़ने लगे
कौन सा सत्संग सुनकर आये थे बस्ती के लोग
लौटते ही दो क़बीलों की तरह लड़ने लगे
हम फ़कत शतरंज की चालें हैं उनके वास्ते
दी ज़रा-सी शह तो मोहरों की तरह लड़ने लगे
इससे तो बेहतर था हम जाहिल ही रह जाते, मगर
पढ़ गए, पढ़कर दरिंदों की तरह लड़ने लगे