June 26th, 2014
छीनकर पलकों से तेरे ख़्वाब तक ले जाएगा
एक झोंका याद के सारे वरक ले जाएगा
वक़्त इक दरिया है इसके साथ बहना सीख लो
वरना ये तुमको बहाकर बेझिझक ले जाएगा
रास्ते चालाक थे देते रहे हमको फ़रेब
यह सुरग ले जाएगा और वो नरक ले जाएगा
दूल्हा बनकर हर ख़ुशी के द्वार आँसू एक दिन
आएगा और मांग भर, करके तिलक ले जाएगा
किसको था मालूम मौसम का मुसाफ़िर लूट कर
तितलियों से रंग, फूलों से महक ले जाएगा
Tags: Dreams, Environment, Memories, Nature, Philosophy, Satire, Time
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on Thursday, June 26th, 2014 at 8:36 pm and is filed under ख़ुशबुओं की यात्रा, ग़ज़ल, चौमास, बरगद ने सब देखा है.
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