June 26th, 2014
था कभी गुलज़ार, अब बंजर हूँ मैं
इक पुरानी क़ब्र का पत्थर हूँ मैं
क़तरे-क़तरे के लिये भटका हूँ पर
लोग ये कहते हैं कि सागर हूँ मैं
अब तो तनहाई भी है, तन्हा भी हूँ
अब तो पहले से बहुत बेहतर हूँ मैं
टूटते पत्ते ने ये रुत से कहा
आनेवाली नस्ल का रहबर हूँ मैं
हैं जुदा बस नाम, दोनों एक हैं
आप मुझमें, आपके भीतर हूँ मैं
अश्क ने पलकों से हँसकर ये कहा
कसमसाती याद का झूमर हूँ मैं