June 26th, 2014
था कभी गुलज़ार, अब बंजर हूँ मैं
इक पुरानी क़ब्र का पत्थर हूँ मैं
क़तरे-क़तरे के लिये भटका हूँ पर
लोग ये कहते हैं कि सागर हूँ मैं
अब तो तनहाई भी है, तन्हा भी हूँ
अब तो पहले से बहुत बेहतर हूँ मैं
टूटते पत्ते ने ये रुत से कहा
आनेवाली नस्ल का रहबर हूँ मैं
हैं जुदा बस नाम, दोनों एक हैं
आप मुझमें, आपके भीतर हूँ मैं
अश्क ने पलकों से हँसकर ये कहा
कसमसाती याद का झूमर हूँ मैं
Tags: Emotions, Introduction, Memories, Philosophy, Poetry, Positivity, Relations
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June 26th, 2014
खोजना है खोजिए, मिल जाएगा मेरा पता
बूढ़े पेड़ों के तनों पर अब भी है लिक्खा हुआ
ख़ुदग़रज़ दुनिया से मैंने आज तक चाहा भी क्या
कोई स्वर, कोई ग़ज़ल या कोई मुखड़ा गीत का
रूह में ताज़ा है जिसकी सौंधी ख़ुश्बू आज भी
उस शहर में अब मुझे कोई नहीं पहचानता
मेरे बचपन से मुझे इक बार जो मिलवा सके
ढूँढता फिरता हूँ मैं जादू का ऐसा आइना
हमने दीवारें गिराई थीं कि हम होंगे क़रीब
और बढ़ता ही गया लेकिन दिलों का फ़ासला
ढेर सारे अप्रतीक्षित पत्र मिलते हैं मुझे
मुझको है जिसकी तलब, लाता नहीं वो डाकिया
Tags: Childhood, Emotions, Introduction, Poetry, Relations, Satire
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June 26th, 2014
न समुन्दर हूँ, ना मैं दरिया हूँ
भीगी पलकों में ठहरा लमहा हूँ
ख़ुश्बुओं के सहन में रहता हूँ
एक ताज़ा हवा का झोंका हूँ
मैं समझता हूँ रुख़ हवाओं का
गरचे, सूखा हुआ-सा पत्ता हूँ
जिनका परिचय है, ना पता कोई
मैं उन्हें रोज़ पत्र लिखता हूँ
मेरा परिचय है मित्र बस इतना
गीत बुनता हूँ, गीत जैसा हूँ
Tags: Environment, Introduction, Nature, Philosophy, Poetry, Satire
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