June 30th, 2014
काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ नदियों में तैराते रहे
जब तलक़ ज़िन्दा रहे बचपन को दुलराते रहे
रात कैसे-कैसे ख्याल आते रहे, जाते रहे
घर की दीवारों से जाने क्या-क्या बतियाते रहे
स्वाभिमानी ज़िन्दगी जीने के अपराधी हैं हम
सैंकड़ों पत्थर हमारे गिर्द मँडराते रहे
कोई समझे या न समझे वो समझता है हमें
उम्र-भर इस मन को हम ये कह के समझाते रहे
ख्वाब में आते रहे वो सब शहीदाने-वतन
मरते-मरते भी जो वन्देमातरम् गाते रहे
Tags: Childhood, Love, Patriotism, Poetry, Romance
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June 26th, 2014
देश की माटी नहीं चंदन से कम
चंदन से कम
जन्म जितनी बार भी लूँ
लूँ इसी भू पर जनम
सच कहो हर रोज़ इक त्यौहार देखा है कहीं
स्वर्ग का वैभव तो इसके सामने कुछ भी नहीं
हर दिशा उच्चारती सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम्
देश की माटी नहीं चंदन से कम
चंदन से कम
पेड़, नदियाँ, पर्वतों तक की जहाँ हो आरती
शांति और सद्भावना की मूर्ति माँ भारती
सृष्टिकर्ता भी जहाँ पर जन्म लेते हैं स्वयम्
देश की माटी नहीं चंदन से कम
चंदन से कम
सप्तरंगी इन्द्रधनुषी सभ्यताओं से बंधे
शब्द हैं सबके अलग पर एक ही लय से बंधे
राम और रहमान मिलकर गाएँ वन्देमातरम्
देश की माटी नहीं चंदन से कम
चंदन से कम
Tags: Desh Ki maati nahi, India, Patriotism, Poetry
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June 26th, 2014
उनका मक़सद था
आवाज़ को दबाना
अग्नि को बुझाना
सुगंध को क़ैद करना
तुम्हारा मक़सद था
आवाज़ बुलन्द करना
अग्नि को हवा देना
सुगन्ध को विस्तार देना
वे क़ायर थे
उन्होंने तुम्हें असमय मारा
तुम्हारी राख को ठंडा होने से पहले ही
प्रवाहित कर दिया जल में
जल ने
अग्नि को और भड़का दिया
तुम्हारी आवाज़ शंखनाद में तब्दील हो गई
कोटि-कोटि जनता की प्राणवायु हो गए तुम
Tags: Bhagat Singh, Patriotism, Poetry
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June 26th, 2014
चन्द पल तेरी बाँहों में हम जी लिए
यूँ लगा जैसे जन्मों-जनम जी लिए
फूल ने शाख़ से टूटते दम कहा-
“कम जिए पर तुम्हारी क़सम जी लिए”
बादशाहों को भी कब मयस्सर हुई
ज़िन्दगानी जो अहले क़लम जी लिए
घर का अहसास उभरा जो परदेस में
जितने मुमकिन थे सारे ही ग़म जी लिए
मरते-मरते वो ख़ुश्बू लुटाकर गए
क्या हुआ वो जो थोड़ा-सा कम जी लिए
Tags: Confidence, Life, Patriotism, Philosophy, Poetry, Romance
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