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कभी सपने, कभी आँसू, कभी काजल की तरह

June 26th, 2014

कभी सपने, कभी आँसू, कभी काजल की तरह
चश्म-दर-चश्म भटकता फिरा बादल की तरह

 

ज़िन्दगी मेरी मरुस्थल है, हर इक बूँद मुझे
रोज़ दौड़ाती रही है किसी पागल की तरह

 

ऐसा लगता है कहीं पास, बहुत पास है तू
सरसराती है हवा जब तेरे आँचल की तरह

 

चन्द रोज़ा हैं ये ख़ुशियाँ, तू इन्हें क़ैद न कर
मुट्ठियों से ये फिसल जाएंगी मख़मल की तरह

 

धूप दुश्मन के भी हिस्से की उठा लेगा अगर
लोग पूजेंगे तुझे गाँव के पीपल की तरह

चन्द पल तेरी बाँहों में हम जी लिए

June 26th, 2014

चन्द पल तेरी बाँहों में हम जी लिए
यूँ लगा जैसे जन्मों-जनम जी लिए

 

फूल ने शाख़ से टूटते दम कहा-
“कम जिए पर तुम्हारी क़सम जी लिए”

 

बादशाहों को भी कब मयस्सर हुई
ज़िन्दगानी जो अहले क़लम जी लिए

 

घर का अहसास उभरा जो परदेस में
जितने मुमकिन थे सारे ही ग़म जी लिए

 

मरते-मरते वो ख़ुश्बू लुटाकर गए
क्या हुआ वो जो थोड़ा-सा कम जी लिए